1भाइयो तथा बहिनियो, अब मइँ चाहत हउँ कि तू आतिमा क बरदान क बारे मँ जाना।
1आता, बंधूनो, आध्यात्मिक दानांसबंधी तुम्ही अज्ञान असावे असे मला वाटत नाही.
2तू जानत अहा कि जब तू विधर्मी रह्या तब तोहे गूॅगी जड़ मूर्तियन कइँती जइसेन भटकावा जात रहा, तू वइसेन ही भटकत रह्य।
2तुम्हाला माहीत आहे की जेव्हा तुम्ही यहूदीतर होता तेव्हा मूर्तिपूजेकडे तुमचा कल होता.
3तउन मइँ तोहे बतावत हउँ कि परमेस्सर क आतिमा क बोलइ वाला कउनउ इ नाही कहत, “ईसू क स्राप लगइ” अउर पवित्तर आतिमा क बगैर मदद द्वारा कहइवालन क न केउ इ कहि सकई, “ईसू पर्भू अहइ।”
3म्हणून मी तुम्हांला सांगत आहे की, देवाच्या आत्म्याने बोलणारा कोणीही मनुष्य असे म्हणत नाही की, “येशू शापित असो.” आणि पवित्र आत्म्याशिवाय कोणीही “येशू प्रभु आह,” असे म्हणू शकत नाही.
4हर एक क आतिमा क अलग-अलग बरदान मिला बा। मुला ओनका देइवाली आतिमा तउ एक्कइ बा।
4आध्यात्मिक दाने विभागलेली आहेत पण तोच आत्मा ही विभागणी करतो.
5सेवा कइउ तरह क निस्चित कीन्ह गइ बाटिन मुला हम सब जेकर सेवा करत अही उ पर्भू तउ एक ही अहइ।
5सेवेचे प्रकार आहेत, पंरतु ज्याची आम्ही सेवा करतो तो एकच आहे.
6काम-काज बहुत स बतावा गवा बाटेन मुला सबहिं क बीच सब कामन क करइवाला उ परमेस्सर तउ एक ही अहइ।
6कार्य करण्याचे वेगवेगळे विभाग आहेत पण ह्या सेवा एकाच देवाकडून येतात.
7सब कउनो मँ आतिमा केउ न केउ रूपे मँ परगट होत ह जउन हर एक क भलाइ क बरे होत ह।
7कारण प्रत्येकाच्या फायद्यासाठी एकेकाला आत्म्याचे प्रकटीकरण दिले आहे.
8कउनो क आतिमा क जरिये परमेस्सर क गियान स युक्त भइ बोलइ क योग्यता दीन्ह गइ बा। तउ केउ क उही आतिमा क जरिये दिव्य गियान क प्रबचन क योग्यता।
8एका व्यक्तीला आत्म्याच्या द्वारे दैवी ज्ञानाचे वचन सांगण्याचे शहाणपण दिले जाते. आणि दुसऱ्या व्यक्तीला त्याच आत्म्याच्या द्वारे दैवी ज्ञानाने बोलण्याचे,
9अउर केउ क उही आतिमा द्वारा बिसवास क बरदान दीहा गवा बा तउ केउ क चंगा करइ क छमता ऊही आतिमा क जरिये दीन्ह गइ बा।
9कोणाला त्याच आत्म्याने विश्वास व दुसऱ्याला फक्त त्याचा एका आत्म्याद्वारे बरे करण्याचे दान दिले आहे.
10अउर केउ दुसरे मनई क अद्भुत कारजन करइ क सक्ती दीन्ह गइ बा तउ केउ दूसरे क परमेस्सर कइँती स बोलइ क सामर्थ्य दीन्ह गवा बा। अउर केउ क मिली बा भली बुरी आतिमा क अन्तर क पहिचानइ क सक्ती कउनो क अलग-अलग भाखा बोलइ क सक्ती मिली भइ बा: तउ केउ क भाखा क बियाखिया कईके ओकर मतलब निकालइ क सक्ती।
10दुसऱ्या कोणाला अद्भुत कार्ये करण्याची शक्ति व दुसऱ्याला भविष्य सांगण्याची शक्ति, तर दुसऱ्याला आत्म्या आत्म्यातील फरक ओळखण्याची, दुसऱ्या कोणाला वेगवेगळ्या भाषा बोलण्याची, दुसऱ्याला भाषांतर करुन अर्थ सांगण्याची शक्ति दिली आहे.
11मुला इ उहई एक आतिमा बा जउन जेह-जेह क जइसेन-जइसेन ठीक समझत ह, देत भए इन सब बातन क पूरा कइ सकत ह।
11परंतु तो एकच आत्मा जो त्याच्या इच्छेप्रमाणे एकेकाला वाटून देऊन ही सर्व कार्ये पूर्णत्वास नेतो.
12जइसेन हममें स हर एक क सरीर तउ एक्कइ बा, पर ओहमाँ अंग कइयउ बाटेन। अउर यद्यपि अंगन क कइयउ रहत भए ओनसे देह एकइ बनत ह वइसेन ही मसीह अहइ।
12कारण ज्याप्रमाणे आपणातील प्रत्येकाला एकच शरीर आणि त्याला अनेक अवयव असतात, आणि तरीही सर्व अवयव जरी ते पुष्कळ असले तरी त्यांचे मिळून एक शरीर बनते. तसाच ख्रिस्तसुद्धा आहे.
13काहेकि चाहे हम यहूदी रहा अही, चाहे गैर यहूदी, सेवक होइ य स्वतन्त्र एकइ सरीर क विभिन्न अंग बनी जाइ क बरे हम सब क एकइ आतिमा द्वारा बपतिस्मा दीन्ह गवा अउर पियास बुझावइ क हम सब क एकइ आतिमा दीन्ह गइ बा।
13जर आपण यहूदी किंवा ग्रीक, गुलाम किंवा स्वतंत्र असून आपणांला एकच आत्मा देह म्हणून दिला आहे. कारण एका आत्म्याने आपणाला एक शरीर होण्यासाठी बाप्तिस्मा दिलेला आहे.
14अब देखा, मनई सरीर कउनो एक अंग स ही तउ बना नाहीं होत, बल्कि ओहमाँ बहुत स अंग होत हीं।
14आता एका मानवी शरीरात एकच अवयव असत नाही, तर पुष्कळ असतात
15अगर गोड़ कहई, “काहेकि मइँ हाथ नाहीं हउँ, इही बरे मोर सरीर स कउनउ सम्बन्ध नाहीं तउ इही बरे क उ सरीर क अंग न रही।
15जर पाय म्हणतो, “मी हात नाही म्हणून मी शरीराचा नाही,” तर तो या कारणासाठी शरीराचा नाही असे होत नाही, होते का?
16इही तरह अगर कान कहइ, “काहेकि मइँ आँख नाहीं हउँ,” एह बरे मइँ सरीर क नाहीं हउँ।” तउ का इही कारण स उ सरीर क अंग न रही।
16आणि जर कान म्हणेल, “मी डोळा नाही म्हणून मी शरीराचा नाही,” तर तो या कारणासाठी शरीराचा नाही असे होत नाही. होते का?
17अगर एक आँख ही सब सरीर होत तउ सुना कहाँ स जात? अगर कान ही सब सरीर होत तउ सूँघा कहाँ स जात?
17संबंध शरीरच जर डोळा असते तर आपल्याला ऐकता कसे आले असते?
18मुला परमेस्सर जइसा ठीक समझेस उ सही मँ सरीर मँ वइसेन ही स्थान दिहेस।
18परंतु प्रत्यक्षात शरीरातील प्रत्येक अवयव देवाने त्याच्या इच्छेप्रमाणे ठेवला आहे.
19तउ सरीर क सब अंग एक जइसा ही होइ जात तउ सरीर ही कहाँ होत।
19आणि सर्व अवयव जर एकच अवयव असते तर शरीर कोठे असते?
20मुला स्थिति इ बा कि अंग त कइयउ होत हीं मुला सरीर एक्कइ रहत ह।
20पण असे आहे की, अवयव अनेक आहेत, शरीर मात्र एकच आहे.
21आँख हाथे स इ नाहीं कहि सकत, “मोका तोहार जरूरत नाहीं बाटइ!” या अइसे ही सिर, गोड़न स इ नाहीं कहि सकत, “हमका तोहार जरूरत नाहीं!”
21डोळा हाताला म्हणू शकत नाही की, “मला तुझी गरज नाही.” किंवा दुसरे उदाहरण द्यायचे तर डोक पायांना म्हणू शकत नाही, “मला तुमची गरज नाही.”
22एकरे बिलकूल उल्टा सरीर क अंगन क हम कमजोर समझित ह, उ सबइ बहुत जरूरी होत हीं।
22याच्या उलट जे अवयव आपण कमी महत्त्वाचे समजतो, त्यांची आपण अधिक काळजी घेतो.
23अउर सरीर क जउने अंगन क हम कम आदरणीय समझित ह, ओनकर हम जियादा धियान रखित ह। अउर हमार गुप्त अगं अउर जियादा सालीनता पाइ लेत हीं।
23आणि जे न दाखवण्याजोगे अवयव त्यांना मोठ्या सभ्यतेने वागवतो.
24जब कि हमरे प्रदर्सनीय अंगन क एह तरह क उपचार क जरूरत नाहीं होत। मुला परमेस्सर तउ हमरे सरीर क रचना एह ढंग स किहेस ह जेहसे ओन अंगन क जउन कम सुन्दर बा अउर जियादा आदर मिलइ।
24पण आपल्या दाखविता येण्याजोग्या अवयवांना तशी गरज नसते. त्याऐवजी जे अवयव उणे आहेत त्यांना मोठा मान देण्यासाठी देवाने असे शरीर जुळविले आहे,
25ताकि देहे मँ कहूँ कउनउ फूट न पड़इ बल्कि देहे क अंग परस्पर एक दुसरे क समान रूप स धियान रखइँ।
25यासाठी की शरीरात कोणतेही मतभेद नसावेत तर उलट अवयवांनी एकमेकांची काळजी घ्यावी.
26अगर सरीर क कउनउ एक अंग दुख पावत ह तउ ओकरे साथे सरीर क अउर सभन अंग दुखी होत हीं। अगर कउनउ एक अंग क मान बढ़वत ह त ओकर खुसी मँ सभन अगं हिस्सा बटाव थीं।
26जर शरीराचा एक अवयव दुखत असेल तर सर्व अवयव त्याच्याबरोबर दु:ख सोसतात, एका अवयवाचा सन्मान झाला तर सर्व अवयव त्याच्याबरोबर आनंदीत होतात.
27एह तरह तू सभन लोग मसीह क देह अहा अउर अलग-अलग रूप मँ ओकर अंग अहा।
27म्हणून तुम्ही ख्रिस्ताचे शरीर आहात आणि वैयक्तिकरीत्या अवयव आहात
28ऍतना ही नाहीं परमेस्सर तउ कलीसिया मँ पहिले प्रेरितन क, दूसरे नबियन क, तीसरे उपदेसकन क फिन अद्भुत कारजन करइ वालन क, चंगा करइ क सक्ती स युक्त मनइयन क, फिन ओनकर जउन दुसरन क सहायता करत हीं, स्थापित किहे अहइ, फिन अगुवाई करइवालन क अउर फिन ओन्हन लोगन क जउन विभिन्न भाखा बोल सकत हीं।
28शिवाय देवाने मंडळीत प्रथम प्रेषित, दुसरे संदेष्टे, तिसरे शिक्षक, जे चमत्कार करतात ते, ज्यांना आरोग्य देण्याचे दान आहे ते,
29का इ सब लोग प्रेरित अहइँ? का इ सब लोग नबी अहइँ? का इ सब लोग उपदेसक अहइँ? का इ सब लोग अचरज काम करत हीं?
29जे लोक मदत करतात, जे पुढारीपण करतात व ज्या लोकांना भिन्न भिन्न भाषा बोलण्याचे दान आहे, असे लोक ठेवले आहेत. म्हणजे सर्वच प्रेषित नाहीत, सर्वच संदेष्टे नाहीत, सर्वच शिक्षक नाहीत, सर्वांनाच चमत्कार करण्याची शक्ति नाही.
30का इ सब लोगन क लगे चंगा करइ क सक्ती बाटइ? का इ सब लोग दूसर भाखा बोलत हीं?
30सर्वांनाच आरोग्य देण्याची दाने नाहीत, सर्वच अन्य भाषेत बोलत नाहीत, सर्वांनाच भाषांचा अर्थ सांगण्याची शक्ति नाही. 31तथापि आत्म्याच्या अधिक मोठ्या दानांसाठी प्रयत्न करा. आणि आता मी तुम्हांस ह्याहूनही उत्तम मार्ग दाखवितो.
31हाँ, मुला आतिमा क अउर बड़ा बरदान पावइ क बरे यत्न करत रहा। अउर इ सबन क बरे अच्छा रस्ता तू पचन क अब मइँ देखउब।
31[This verse may not be a part of this translation]