1एक दाईं सबित क दिन मुख्य फरीसियन मँ स कउनो क घर ईसू खइया बरे गवा। ओहर उ पचे नगिचे स आँखि गड़ाइके लखत रहेन।
1एका शब्बाथ दिवशी तो प्रमुख परुश्यांपैकी एकाच्या घरी जेवावयास गेला, तेव्हा तेथे असणारे लोक येशूवर बारकाईने नजर ठेवीत होते.
2हुवाँ ओकरे समन्वा जलंधर स दुःखी एक ठु मनई रहा।
2आणि तेथे त्याच्यासमोर जलोदर झालेला एक मनुष्य होता.
3ईसू धरम सास्तिरियन अउर फरीसियन स पूछेस, “सबित क दिन कउनो क चंगा करब उचित अहइ या नाहीं?”
3येशूने नियमशास्त्राच्या शिक्षकांना व परुश्यांना विचारले, “शब्बाथ दिवशी बरे करणे नियमशास्त्राला धरुन आहे की कसे?”
4मुला उ पचे खमोस रहेन। तउ ईसू उ मनई क लइके चंगा कइ दिहस अउर फिन ओका कहूँ पठइ दिहस।
4पण ते गप्प राहिले. तेव्हा येशूने त्या आजारी माणसाला धरुन त्याला बरे केले व त्याला पाठवून दिले.
5फिन उ ओनसे पूछेस, “जदि तोहमाँ स कउनो क लगे आपन बेटवा अहइ या बर्धा अहइ, उ कुआँ मँ गिरि पड़त ह तउ सबित क दिन भी तू ओका फउरन नाहीं निकरिब्या?”
5मग तो त्यांना म्हणाला, “जर तुमच्यापैकी एखाद्याला एक मुलगा किंवा एक बैल आहे व तो विहीरीत पडला, तर शब्बाथ दिवशी तुम्ही त्याला ताबडतोब बाहेर काढणार नाही काय?”
6उ पचे ऍह पइ ओकर बात नाहीं काटि सकेन।
6आणि ह्या प्रश्नाला उत्तर देणे त्यांना जमले नाही.
7काहेकि ईसू इ लखेस कि मेहमान आपन बरे बइठइ क कउनो खास ठउर ढँूढत रहेन, तउ उ ओनका एक दिस्टान्त कथा सुनाएस। उ बोला:
7मग त्याने पाहुण्यांना एक बोधकथा सांगितली, कारण त्याने पाहिले की, ते त्यांच्यासाठी मानाच्या जागा शोधीत होते. तो त्यांना म्हणाला,
8“जब तोहका कउनो बियाहे क भोज प बोलावइ तउ हुवाँ कउनो सम्मान क ठउर प जिन बइठा। काहेकि होइ सकत ह हुवाँ कउनो तोहसे जिआदा बड़कवा मनई क उ बोलॉए होइ।
8“जेव्हा एखादा तुम्हांला लग्नाच्या मेजवानीला आमंत्रित करील, तेव्हा मानाच्या आसनावर बसू नका. कारण तुमच्यापेक्षा अधिक महत्त्वाच्या माणसाला त्याने कदाचित आमंत्रण दिले असेल.
9फिन तू दुइनउँ क बोलॉवइवाला तोहरे लगे आइके तोसे कही, ‘आपन इ जगह इ मनई क दइ द्या।’ अउर फिन लजाइके तोहका सबन क तले क ठउरे प बइठइ क होइ।
9मग ज्याने तुम्हा दोघांना आमंत्रित केले आहे तो येईल, आणि तुम्हांला म्हणेल, “या माणसाला तुझी जागा दे.’ मग खजील होऊन तुम्हांला खालच्या जागी बसावे लागेल.
10तउ जब तोहका बोलॉवा जात ह तउ जाइके सबन त तले क जगह ग्रहण कइ ल्या जइसे जब तोहका न्यौता देइवाला आवइ तउ तोहसे कही, ‘मीत उठा, ऊपर बइठा।’ फिन उ सबन क समन्वा, जउन तोहरे लगे हुवाँ मेहमान होइहीं, तोहार मान बाढ़ी।
10पण जेव्हा तुम्हांला आमंत्रित केलेले असेल, तेव्हा जा आणि अगदी खालच्या (शेवटच्या) जागी जाऊन बसा. यासाठी की, जेव्हा यजमान येईल, तेव्हा तो तुम्हांला म्हणेल, “मित्रा, वरच्या आसनावर येऊन बैस.’ तेव्हा तुझ्या पाहुण्यांसमोर तुझा मान होईल.
11काहेकि हर कउनो जउन आपन क उठाई ओका निहुराइ दीन्ह जाई अउर जउन आपन क निहुराई, ओका ऊँचा कीन्ह जाई।”
11कारण जो कोणी स्वत:ला उच्च करितो त्याला लीन केले जाईल व जो स्वत:ला लीन करील त्याला उच्च केले जाईल.”
12फिन जउन ओका बोलाए रहा, ओसे उ बोला, “जब कबहुँ तू कउनो दिन या राति क भोज द्या तउ आपन धनी पड़ोसियन क जिन बोलावा काहेकि ऍकरे बदले मँ तोहका बोलइहीं अउर इ तरह तोहका ओकर फल मिलि जाई।
12मग ज्याने आमंत्रण दिले होते त्याला तो म्हणाला, “तू जेव्हा दुपारी किंवा संध्याकाळी भोजनास बोलावशील तेव्हा तुझ्या मित्रांना, भावांना, किंवा तुझ्या नातेवाईकांना वा श्रीमंत शेजाऱ्यांना बोलावू नको, कारण तेही तुला परत आमंत्रण देतील व अशा रीतीने तुझ्या आमंत्रणाची परतफेड केली जाईल.
13मुला जब तू कउनो भोज द्या तउ दीन दुखियन, अपाहिजन, लंगड़न अउर अँधरन क बोलावा।
13पण जेव्हा तू मेजवानी देशील, तेव्हा गरीब, लंगडे, पांगळे, आंधळे यांना आमंत्रण दे.
14फिन काहेकि ओनके लगे वापस लउटावइ कछू नाहीं अहइ, तउ इ तोहरे बरे आसीर्वाद बनि जाई। ऍकर बदले क फल तोहका धर्मी मनई क जी उठइ प दीन्ह जाई।”
14आणि तुला आशीर्वाद मिळतील, कारण तुझी परतफेड करण्यासाठी त्यांच्याकडे काहीही असणार नाही. कारण नीतीमानांच्या पुनरुत्थानाच्या वेळी तुझी परतफेड होईल.”
15फिन ओकरे संग खइया क खात रहेन मनइयन मँ स एक इ सुनिके ईसू स कहेस, “हर उ मनई धन्य अहइ, जउन परमेस्सर क राज्य मँ जेंवत ह!”
15आता जेव्हा मेजाभोवती बसलेल्यांपैकी एकाने हे ऐकले, तेव्हा तो येशूला म्हणाला, “देवाच्या राज्यात जेवतो, तो प्रत्येक जण धन्य!”
16तब ईसू ओसे कहेस, “एक मनई कउनो बड़के भोज क तइयारी करत रहा, उ बहोत स मनइयन क न्यौत दिहस।
16मग येशू त्याला म्हणाला, “एक मनुष्य एका मोठ्या मेजवानीची तयारी करीत होता. त्याने पुष्कळ लोकांना आमंत्रण दिले.
17फिन दावत क समइ जेनका न्यौत दिहस, नउकरे क पठइके इ कहवाएस, ‘आवा! काहेकि भोजन तइयार अहइ।’
17भोजनाच्या वेळी ज्यांना आमंत्रण दिले होते त्यांना “या, कारण सर्व तयार आहे’ हे सांगण्यासाठी नोकराला पाठविले.
18उ सबइ एक तरह आनाकानी करइ लागेन। पहिला ओसे कहेस, ‘मइँ एक खेत बेसहे अहउँ, मोका जाइके ओका देखब अहइ, कृपा कइके मोका छमा करइँ।’
18ते सर्वजण सबब सांगू लागले. पाहिला त्याला म्हणाला, “मी शेत विकत घेतले आहे आणि मला जाऊन ते पाहिले पाहिजे. कृपा करुन मला क्षमा कर.’
19फिन दूसर कहेस, ‘मइँ पाँच जोड़ी बर्धा मोल लिहे अहउँ, मइँ तउ सिरिफ ओनका परखइ जात हउँ, कृपा कइके मोका छमा करइँ।’
19दुसरा म्हणाला, “मी बैलाच्या पाच जोड्या विकत घेतल्या आहोत व त्या कशा आहेत हे बघण्यासाठी मी चाललो आहे, कृपा करुन मला क्षमा कर.’
20एक अउर भी बोला, ‘मइँ अबहिं बियाह किए हउँ। इ कारण स नाहीं आइ सकत हउँ।’
20आणखी तिसरा म्हणाला, “मी लग्न केले आहे, व त्यामुळे मी येऊ शकणार नाही.’
21तउ जब उ नउकर लौटिके आवा तउ उ आपन स्वामी क इ बातन बताइ दिहस, ऍह पइ उ घरे क स्वामी बहोत कोहाइ गवा अउर आपन नउकरे स कहेस, ‘हाली ही! सहर क गली कूचा मँ जा अउर गरीब गुरबा, अपाहिज, आँधर अउर लँगड़न क हिआँ लइ आवा।’
21म्हणून जेव्हा तो नोकर परत आला, तेव्हा त्याने आपल्या मालकाला या गोष्टी सांगितल्या. मग घराचा मालक रागावला आणि नोकराला म्हणाला, “लवकर बाहेर रस्त्यावर आणि नगारातल्या गल्ल्यांमध्ये जा व गरीब, आंधळे, असहाय्य, लंगडे यांना घेऊन इकडे ये!’
22उ नउकर स कहेस, ‘स्वामी तोहार हुकुम पूरी कइ दीन्ह गइ अहइ मुला अबहिं भी ठउर बाकी अहइ।’
22नोकर म्हणाला, “आपल्या आज्ञेप्रमाणे केले आहे. आणि तरीही जागा आहे.’
23फिन स्वामी नउकरे स कहेस, ‘सड़कन प अउर खेतन क मेड़े ताई जा अउर हुवाँ स मनइयन स चिरौरी कइके हिआँ बुलाइ लिआवा जेसे मोर घर भरि जाइ।
23मालक नोकराला म्हणाला, “रस्त्यावर जा, कुंपणाजवळ जा आणि तेथे असलेल्या लोकांना आग्रहाने आत येण्यास सांग म्हणजे माझे घर भरुन जाईल.
24अउर मइँ तोहसे कहत हउँ जउन पहिले बोलाइ गवा रहेन ओहमाँ स एक भी भोज न चिखइ सकेन!”‘
24कारण मी तुम्हांस सांगतो की, त्या आमंत्रित केलेल्या कोणालाही माझ्या मेजवानीतली चव पाहायला मिळणार नाही.”‘
25ईसू क संग भारी भीड़ जात रही। उ ओनके कइँती मुड़ि गवा अउर बोला,
25मोठ्या संख्येने लोक येशूबरोबर चालत होते. तो त्यांच्याकडे वळाला व म्हणाला,
26“जदि मोरे लगे कउनो आवत ह अउर आपन बाप महतारी, पत्नी अउर बचवा, आपन भाइयन अउर बहिनियन अउर हिआँ ताईं कि आपन जिन्नगी तलक स मोसे जिआदा पिरेम राखत ह, उ मोर चेला नाहीं होइ सकत।
26“जर कोणी माझ्याकडे येतो आणि आपले वडील, आई, पत्नी, मुले, भाऊ, बहिणी एवढेच नव्हे, तर स्वत:च्या जिवाचासुद्धा द्धेष करीत नाही, तर तो माझा शिष्य होऊ शकत नाही.
27जउन आपन क्रूस (यातना) उठाइके मोरे पाछे नाहीं चलत ह, उ मोर चेला नाहीं होइ सकत।
27जो कोणी स्वत:चा वधस्तंभ घेऊन माझ्यामागे येणार नाही, तो माझा शिष्य होऊ शकणार नाही.
28जदि तोहमाँ स कउनो बुर्ज बनावइ चाहइ तउ का उ पहिले स बइठिके ओकरे दामे क, इ लखइ बरे कि ओका पूरा करइके ओकरे लगे काफी कछू बा कि नाहीं, हिसाब उसाब न लगाई?
28जर तुम्हांपैकी कोणाला बुरुज बांधायचा असेल तर तो अगोदर बसून खर्चाचा अंदाज करुन तो पूर्ण करावयास त्याच्याजवळ पुरेसे आहे की नाही हे पाहणार नाही काय?
29नाहीं तउ उ नेंव तउ खनि देइ अउर ओका पूरा न कइ पावइ स, जउन ओका सुरु होत लखेन ह, सबहिं ओकर मसखरी उड़इहीं अउर कइहीं,
29नाहीतर कदाचित तो पाया घालील आणि पूर्ण करु शकणार नाही. आणि जे पाहणारे आहेत ते त्याची थट्टा करतील आणि म्हणतील,
30‘अरे लखा इ मनई बनाउब तउ सुरु कहेस ह मुला इ ओका पूर नाहीं कइ सका!’
30ʅया मनुष्याने बांधण्यास सुरुवात केली पण पूर्ण करु शकला नाही!’
31“या कउनो राजा अइसा होइ जउन कउनो दूसर राजा क खिलाफ जुद्ध छेड़इ जाइ अउर पहिले बैठिके इ न बिचारइ कि आपन दस हजार सैनिकन क संग का उ बीस हजार सैनिकन आपन बैरी क मुकाबला कइ भी सकी कि नाहीं?
31ʇकिंवा एक राजा दुसऱ्या राजाबरोबर लढाई करण्यास निघाला, तर तो अगोदर बसून याचा विचार करणार नाही का की, त्याच्या दहा हजार मनुष्यांनिशी त्याच्या शत्रूशी, जो वीस हजार सैन्यानिशी चालून येत आहे, त्याला मुकाबला करता येणे शक्य आहे काय?
32अउर जदि उ समर्थ नाहीं होत तउ ओकर बैरी अबहीं राहे मँ होइहीं तबहिं उ आपन प्रतिनिधि मंडल क पठइके सांति मिलाप क सुझाई।
32जर तो त्याला तोंड देऊ शकणार नसेल, तर त्याचा शत्रु दूर अंतरावर असतानाच तो शिष्टमंडळ पाठवून शांततेसाठी तहअटींची विचारणा करील.
33तउ फिन इहइ तरह तोहमाँ स कउनो भी जउन आपन सबहिं धन दौलत क तजि नाहीं देत, मोर चेला नाहीं होइ सकत।
33त्याच प्रकारे तुमच्यापैकी जो कोणी सर्वस्वाचा त्याग करीत नाही त्याला माझा शिष्य होता येणार नाही.
34“नोन उत्तिम अहइ मुला जदि ओकर स्वाद बिगर जाइ तउ ओका फिन स नमकीन नाहीं बनावा जाइ सकता।
34“मीठ चांगले आहे, पण मिठाची जर चव गेली, तर त्याला खारटपणा कशाने येईल?
35न तउ उ माटी क लायक नही अउर न पाँस क कूड़ा क। मनई सिरिफ ओका यूँ ही बहाइ देइहीं। जेकरे लगे सुनइ क कान अहइँ, ओका सुनइ द्या!”
35ते पूर्णपणे निरुपयोगी ठरेल व लोक ते फेकून देतील. “ज्याला ऐकायला कान आहेत तो ऐको!”