1ܬܘܒ ܕܝܢ ܫܪܝ ܗܘܐ ܡܠܦ ܥܠ ܝܕ ܝܡܐ
1दुसऱ्या वेळी येशू सरोवराच्या काठी शिक्षण देऊ लागला. पुष्कळ लोक त्याच्याभोवती जमले. मग तो सरोवरातील नावेत बसला आणि सर्व लोक सरोवराच्या किनाऱ्यावरील जमिनीवर होते.
2ܘܡܠܦ ܗܘܐ ܠܗܘܢ ܒܡܬܠܐ ܤܓܝ ܘܐܡܪ ܗܘܐ ܒܝܘܠܦܢܗ ܀
2त्याने बोधकथेवरून पुष्कळ गोष्टी शिकविल्या. शिक्षण देताना तो म्हणाला,
3ܫܡܥܘ ܗܐ ܢܦܩ ܙܪܘܥܐ ܠܡܙܪܥ ܀
3“ऐका! एक शेतकरी आपले बी पेरावयास गेला.
4ܘܟܕ ܙܪܥ ܐܝܬ ܕܢܦܠ ܥܠ ܝܕ ܐܘܪܚܐ ܘܐܬܬ ܦܪܚܬܐ ܘܐܟܠܬܗ ܀
4तो पेरीत असता काही वाटेवर पडले व पक्ष्यांनी येऊन ते सर्व खाऊन टाकले.
5ܐܚܪܢܐ ܕܝܢ ܢܦܠ ܥܠ ܫܘܥܐ ܐܝܟܐ ܕܠܝܬ ܐܪܥܐ ܤܓܝ ܘܒܪ ܫܥܬܗ ܒܠܨ ܡܛܠ ܕܠܝܬ ܗܘܐ ܥܘܡܩܐ ܕܐܪܥܐ ܀
5दुसरे काही बी खडकाळ जमिनीवर पडले. तेथे फार माती नव्हाती. माती खोल नसल्यामुळे ते लवकर उगवले पण
6ܟܕ ܕܢܚ ܕܝܢ ܫܡܫܐ ܚܡܐ ܘܡܛܠ ܕܠܝܬ ܗܘܐ ܠܗ ܥܩܪܐ ܝܒܫ ܀
6सूर्य उगवल्यावर ते करपले आणि मूळ रूजले नसल्यामुळे ते वाळून गेले.
7ܘܐܚܪܢܐ ܢܦܠ ܒܝܬ ܟܘܒܐ ܘܤܠܩܘ ܟܘܒܐ ܘܚܢܩܘܗܝ ܘܦܐܪܐ ܠܐ ܝܗܒ ܀
7काही बी काटेरी झुडुपात पडले. काटेरी झुडपे अधिक वाढली आणी त्यांनी त्याची वाढ खुंटविली. व त्याला पीक आले नाही
8ܐܚܪܢܐ ܕܝܢ ܢܦܠ ܥܠ ܐܪܥܐ ܛܒܬܐ ܘܤܠܩ ܘܪܒܐ ܘܝܗܒ ܦܐܪܐ ܐܝܬ ܕܬܠܬܝܢ ܘܐܝܬ ܕܫܬܝܢ ܘܐܝܬ ܕܡܐܐ ܀
8पण काही बी चांगल्या जमीनीवर पडले, ते उगवले, वाढले आणि भरपूर पीक आले आणि त्याचे कोठे तीसपट, कोठे साठपट आणि कोठे शंभरपट पीक आले.”
9ܘܐܡܪ ܗܘܐ ܡܢ ܕܐܝܬ ܠܗ ܐܕܢܐ ܕܢܫܡܥ ܢܫܡܥ ܀
9मग तो म्हणाला, “ज्याला ऐकावयास कान आहेत तो ऐको!”
10ܟܕ ܗܘܘ ܕܝܢ ܒܠܚܘܕܝܗܘܢ ܫܐܠܘܗܝ ܗܢܘܢ ܕܥܡܗ ܥܡ ܬܪܥܤܪܬܗ ܡܬܠܐ ܗܘ ܀
10जेव्हा तो एकटा होता तेव्हा त्याच्याभोवती बारा शिष्यांसह जे इतर होते त्यांनी त्या बोधकथांविषयी त्याला विचारले.
11ܘܐܡܪ ܠܗܘܢ ܝܫܘܥ ܠܟܘܢ ܝܗܝܒ ܠܡܕܥ ܐܪܙܐ ܕܡܠܟܘܬܗ ܕܐܠܗܐ ܠܒܪܝܐ ܕܝܢ ܟܠ ܡܕܡ ܒܡܬܠܐ ܗܘܐ ܀
11तो त्यास म्हणाला, “केवळ तुम्हांस देवाच्या राज्याचे रहस्य जाणून घेण्याचे (अधिकार) देण्यात आले आहेत, पण बाहेराच्यांना गोष्टीरूपात सांगितले आहे.
12ܕܟܕ ܚܙܝܢ ܢܚܙܘܢ ܘܠܐ ܢܚܙܘܢ ܘܟܕ ܫܡܥܝܢ ܢܫܡܥܘܢ ܘܠܐ ܢܤܬܟܠܘܢ ܕܠܡܐ ܢܬܦܢܘܢ ܘܢܫܬܒܩܘܢ ܠܗܘܢ ܚܛܗܝܗܘܢ ܀
12यासाठी की, ‘ते पाहत असता पाहतील पण त्यांना कधीच दिसणार नाही ते ऐकत असता ऐकतील पण त्यांना कधीच समजणार नाही जर त्यांनी पाहिले आणि त्यांना समजले तर त्यांच्यात कदाचित बदल होईल आणि त्यांना क्षमा करण्यात येईल.”‘ यशाया 6:9-10
13ܘܐܡܪ ܠܗܘܢ ܠܐ ܝܕܥܝܢ ܐܢܬܘܢ ܠܗ ܠܡܬܠܐ ܗܢܐ ܘܐܝܟܢܐ ܟܠܗܘܢ ܡܬܠܐ ܬܕܥܘܢ ܀
13मग तो त्यांस म्हणाला, “तुम्हांला ही बोधकथा समजत नाही काय? तर मग तुम्हांला दुसरी कोणतीही गोष्ट कशी समजेल?
14ܙܪܘܥܐ ܕܙܪܥ ܡܠܬܐ ܙܪܥ ܀
14पेरणारा वचन पेरतो.
15ܗܠܝܢ ܕܝܢ ܕܥܠ ܝܕ ܐܘܪܚܐ ܗܠܝܢ ܐܢܘܢ ܕܡܙܕܪܥܐ ܒܗܘܢ ܡܠܬܐ ܘܡܐ ܕܫܡܥܘ ܡܚܕܐ ܐܬܐ ܤܛܢܐ ܘܫܩܠ ܠܗ ܠܡܠܬܐ ܕܙܪܝܥܐ ܒܠܒܗܘܢ ܀
15काही लोक वाटेवर पेरलेल्या बियांसारखे जेथे वचन पेरले आहे अशासारखे आहेत. जेव्हा ते ऐकतात तेव्हा लगेच सैतान येतो आणि त्यांच्यात पेरलेले वचन घेऊन जातो.
16ܘܗܢܘܢ ܕܥܠ ܫܘܥܐ ܐܙܕܪܥܘ ܗܠܝܢ ܐܢܘܢ ܕܡܐ ܕܫܡܥܘ ܡܠܬܐ ܡܚܕܐ ܒܚܕܘܬܐ ܡܩܒܠܝܢ ܠܗ ܀
16काही लोक खडकाळ जमिनीत पेरलेल्या बियांसारखे असतात. ते ऐकतात तेव्हा लगेच आनंदाने ग्रहण करतात.
17ܘܠܝܬ ܠܗܘܢ ܥܩܪܐ ܒܢܦܫܗܘܢ ܐܠܐ ܕܙܒܢܐ ܐܢܘܢ ܘܡܐ ܕܗܘܐ ܐܘܠܨܢܐ ܐܘ ܪܕܘܦܝܐ ܡܛܠ ܡܠܬܐ ܥܓܠ ܡܬܟܫܠܝܢ ܀
17पण त्यांनी त वचन आपल्यामध्ये खोलवर रूजू (मुळावु) न दिल्यामुळे ते थोडाच काळ टिकतात. जेव्हा वचनामुळे संकटे येतात किंवा त्रास होतो तेव्हा ते चटकन विश्वास ठेवण्याचे सोडून देतात.
18ܘܗܢܘܢ ܕܒܝܬ ܟܘܒܐ ܡܙܕܪܥܝܢ ܗܠܝܢ ܐܢܘܢ ܗܢܘܢ ܕܫܡܥܘ ܡܠܬܐ ܀
18इतर लोक काटेरी झुडपात बी पेरल्याप्रमाणे आहेत. ते असे आहेत की, जे वचन ऐकतात.
19ܘܪܢܝܐ ܕܥܠܡܐ ܗܢܐ ܘܛܘܥܝܝ ܕܥܘܬܪܐ ܘܫܪܟܐ ܕܪܓܝܓܬܐ ܐܚܪܢܝܬܐ ܥܐܠܢ ܚܢܩܢ ܠܗ ܠܡܠܬܐ ܘܕܠܐ ܦܐܪܐ ܗܘܝܐ ܀
19परंतु या संसाराच्या चिंता, संपत्तीचा मोह, आणि इतर गोष्टींची इच्छा या गोष्टी आड येतात, व वचन खुंटवितात व ते फळ देत नाहीत.
20ܘܗܢܘܢ ܕܒܐܪܥܐ ܛܒܬܐ ܐܙܕܪܥܘ ܗܠܝܢ ܐܢܘܢ ܕܫܡܥܝܢ ܡܠܬܐ ܘܡܩܒܠܝܢ ܘܝܗܒܝܢ ܦܐܪܐ ܒܬܠܬܝܢ ܘܒܫܬܝܢ ܘܒܡܐܐ ܀
20आणि इतर दुसरे चांगल्या जमिनीत पेरलेल्या बियांसारखे आहेत. ते असे आहेत की जे वचन ऐकतात, स्वीकारतात, आणि फळ देतात. कोणी तीसपट. साठपट, कोणी शंभरपट.”
21ܘܐܡܪ ܠܗܘܢ ܕܠܡܐ ܐܬܐ ܫܪܓܐ ܕܬܚܝܬ ܤܐܬܐ ܢܬܬܤܝܡ ܐܘ ܬܚܝܬ ܥܪܤܐ ܠܐ ܗܘܐ ܕܥܠ ܡܢܪܬܐ ܢܬܬܤܝܡ ܀
21आणखी तो त्यांस म्हणाला, “दिवा मापाखाली किंवा पलंगाखाली कधी ठेवतात काय? तो दिवठणीवर ठेवण्यासाठी आणीत नाहीत काय?
22ܠܝܬ ܓܝܪ ܡܕܡ ܕܛܫܐ ܕܠܐ ܢܬܓܠܐ ܘܠܐ ܗܘܐ ܒܛܘܫܝܐ ܘܠܐ ܡܬܓܠܐ ܀
22प्रत्येक गोष्ट जी झाकलेली आहे ती उघड होईल. आणि प्रत्येक गुप्त गोष्ट जाहीर होईल.
23ܐܢ ܐܢܫ ܐܝܬ ܠܗ ܐܕܢܐ ܕܢܫܡܥ ܢܫܡܥ ܀
23ज्याला कान आहेत ते ऐको!
24ܘܐܡܪ ܠܗܘܢ ܚܙܘ ܡܢܐ ܫܡܥܝܢ ܐܢܬܘܢ ܒܗܝ ܟܝܠܬܐ ܕܡܟܝܠܝܢ ܐܢܬܘܢ ܡܬܬܟܝܠ ܠܟܘܢ ܘܡܬܬܘܤܦ ܠܟܘܢ ܠܐܝܠܝܢ ܕܫܡܥܝܢ ܀
24नंतर तो त्यास म्हणाला, “तुम्ही जे ऐकता त्याचा काळजीपूर्वक विचार करा. जे माप तुम्ही इतरांसाठी वापरता त्याच मापाने तुमच्यासाठी मोजण्यात जेईल. किंबहूना थोडे जास्तच तुम्हांला देण्यात येईल.
25ܡܢ ܕܐܝܬ ܠܗ ܓܝܪ ܢܬܝܗܒ ܠܗ ܘܡܢ ܕܠܝܬ ܠܗ ܐܦ ܗܘ ܕܐܝܬ ܠܗ ܢܫܬܩܠ ܡܢܗ ܀
25कारण ज्याच्याजवळ आहे त्याला जास्त दिले जाईल आणि ज्या कोणाजवळ नाही त्याच्यापासून जे आहे तेही काढून घेतले जाईल.”
26ܘܐܡܪ ܗܘܐ ܗܟܢܐ ܗܝ ܡܠܟܘܬܐ ܕܐܠܗܐ ܐܝܟ ܐܢܫ ܕܢܪܡܐ ܙܪܥܐ ܒܐܪܥܐ ܀
26आणखी तो म्हणाला, “देवाचे राज्य असे आहे की, एखादा मनुष्य जमिनीवर बी पसरून टाकतो.
27ܘܢܕܡܟ ܘܢܩܘܡ ܒܠܠܝܐ ܘܒܐܝܡܡܐ ܘܙܪܥܐ ܢܪܒܐ ܘܢܐܪܟ ܟܕ ܗܘ ܠܐ ܝܕܥ ܀
27रात्री झोपतो आणि दिवसा उठतो. बी रूजते व ते वाढते हे कसे होते हे त्याला कळत नाही.
28ܐܪܥܐ ܓܝܪ ܡܝܬܝܐ ܠܗ ܠܦܐܪܐ ܘܠܘܩܕܡ ܗܘܐ ܥܤܒܐ ܘܒܬܪܗ ܫܒܠܐ ܐܚܪܝܬ ܕܝܢ ܚܛܬܐ ܡܫܡܠܝܬܐ ܒܫܒܠܐ ܀
28जमीन आपोआप पीक उपजवते. प्रथम अंकुर, नंतर तुरा, त्यानंतर दाण्यांनी भरलेले ओंबी, मग कणसात पर्ण वाढलेला दाणा.
29ܡܐ ܕܫܡܢ ܕܝܢ ܦܐܪܐ ܡܚܕܐ ܐܬܝܐ ܡܓܠܐ ܕܡܛܝ ܚܨܕܐ ܀
29पीक तयार होते तेव्हा तो त्याला लगेच विळा लावतो. कारण कापणीची वेळ आलेली असते.”
30ܘܐܡܪ ܠܡܢܐ ܢܕܡܝܗ ܠܡܠܟܘܬܐ ܕܐܠܗܐ ܘܒܐܝܢܐ ܡܬܠܐ ܢܡܬܠܝܗ ܀
30येशू म्हणाला, “आपण देवाचे राज्य कशासारखे आहे असे म्हणावे किंवा कोणती गोष्ट ते समजावून सांगाण्यासाठी उपयोगात आणावी?
31ܐܝܟ ܦܪܕܬܐ ܗܝ ܕܚܪܕܠܐ ܗܝ ܕܡܐ ܕܐܙܕܪܥܬ ܒܐܪܥܐ ܙܥܘܪܝܐ ܗܝ ܡܢ ܟܠܗܘܢ ܙܪܥܘܢܐ ܕܥܠ ܐܪܥܐ ܀
31ते मोहरीच्या दाण्यासारखे आहे. जो जमिनीत पेरतेवेळी पृथ्वीवरील सर्व दाण्यात सर्वात लहान असतो.
32ܘܡܐ ܕܐܙܕܪܥܬ ܤܠܩܐ ܘܗܘܝܐ ܪܒܐ ܡܢ ܟܠܗܘܢ ܝܪܩܘܢܐ ܘܥܒܕܐ ܤܘܟܐ ܪܘܪܒܬܐ ܐܝܟ ܕܬܫܟܚ ܕܒܛܠܠܗ ܦܪܚܬܐ ܬܫܟܢ ܀
32परंतु तो पेरला जातो तेव्हा तो वाढतो व मळ्यातील सर्व झाडात मोठा होतो. त्याला मोठ्या फांद्या येतात आणि आकाशातील पाखरे त्याच्या सावलीत घरटी बांधू शकतात.”
33ܒܡܬܠܐ ܕܐܝܟ ܗܠܝܢ ܡܡܠܠ ܗܘܐ ܝܫܘܥ ܥܡܗܘܢ ܡܬܠܐ ܐܝܟ ܕܡܫܟܚܝܢ ܗܘܘ ܠܡܫܡܥ ܀
33अशा अनेक बोधकथांनी त्याने ते समजू शकतील असा संदेश त्यांना सांगितला.
34ܘܕܠܐ ܡܬܠܐ ܠܐ ܡܡܠܠ ܗܘܐ ܥܡܗܘܢ ܠܬܠܡܝܕܘܗܝ ܕܝܢ ܒܝܢܘܗܝ ܘܠܗܘܢ ܡܦܫܩ ܗܘܐ ܟܠܡܕܡ ܀
34बोधकथेचा उपयोग केल्याशिवाय त्याने त्यांना इतर काहीही सांगितले नाही, परंतु जेव्हा तो शिष्यांसह एकांतात होता तेव्हा त्याने शिष्यांना सर्व समजावून सांगितले.
35ܘܐܡܪ ܠܗܘܢ ܒܗܘ ܝܘܡܐ ܒܪܡܫܐ ܢܥܒܪ ܠܢ ܠܥܒܪܐ ܀
35त्या दिवशी संध्याकाळ झाल्यावर तो त्यांना म्हणाला, “आपण सरोवरापलीकडे जाऊ या.”
36ܘܫܒܩܘ ܠܟܢܫܐ ܘܕܒܪܘܗܝ ܟܕ ܒܤܦܝܢܬܐ ܗܘ ܘܤܦܝܢܐ ܐܚܪܢܝܬܐ ܐܝܬ ܗܘܝ ܥܡܗܘܢ ܀
36मग त्यांनी लोकसमुदायाला सोडले आणि तो नावेत होता तसेच त्याला घेऊन गेले. त्यांच्याबरोबर इतरही दुसऱ्या नावा होत्या.
37ܘܗܘܬ ܥܠܥܠܐ ܪܒܬܐ ܘܪܘܚܐ ܘܓܠܠܐ ܢܦܠܝܢ ܗܘܘ ܒܤܦܝܢܬܐ ܘܩܪܝܒܐ ܗܘܬ ܕܬܬܡܠܐ ܀
37जोराच्या वाऱ्याचे वादळ आले आणि लाटा नावेवर आदळू लागल्या व ती पाण्याने भरू लागली.
38ܗܘ ܕܝܢ ܝܫܘܥ ܥܠ ܒܤܕܝܐ ܕܡܟ ܗܘܐ ܒܚܪܬܗ ܕܤܦܝܢܬܐ ܘܐܬܘ ܐܩܝܡܘܗܝ ܘܐܡܪܝܢ ܠܗ ܪܒܢ ܠܐ ܒܛܝܠ ܠܟ ܕܐܒܕܝܢ ܚܢܢ ܀
38परंतु येशू मागच्या बाजूस वरामावर उशी घेऊन झोपला होता. त्यांनी त्याला उठविले आणि म्हटले, “गुरुजी, आपण बुडत आहोत तरी आपणांस काळजी वाटत नाही काय?”
39ܘܩܡ ܘܟܐܐ ܒܪܘܚܐ ܘܐܡܪ ܠܝܡܐ ܫܠܝ ܙܓܝܪ ܐܢܬ ܘܫܠܝܬ ܪܘܚܐ ܘܗܘܐ ܢܘܚܐ ܪܒܐ ܀
39मग तो उठला आणि त्याने वाऱ्याला धमकाविले आणि समुद्राला म्हणाला, “शांत हो! स्तब्ध राहा.” मग वारा थांबला व तेथे मोठी शांतता पसरली.
40ܘܐܡܪ ܠܗܘܢ ܠܡܢܐ ܕܚܘܠܬܢܝܢ ܐܢܬܘܢ ܗܟܢ ܘܠܡܢܐ ܠܝܬ ܒܟܘܢ ܗܝܡܢܘܬܐ ܀ 41 ܘܕܚܠܘ ܕܚܠܬܐ ܪܒܬܐ ܘܐܡܪܝܢ ܗܘܘ ܚܕ ܠܚܕ ܡܢܘ ܟܝ ܗܢܐ ܕܪܘܚܐ ܘܝܡܐ ܡܫܬܡܥܝܢ ܠܗ ܀
40मग तो त्यांना म्हणाला, “तुम्ही का भिता? तुमच्याकडे अजुनही कसा विश्वास नाही?”
41
41परंतु ते अतिशय घाबरले आणि एकमेकास म्हणाले, “हा आहे तरी कोण, की वारा आणि समुद्रदेखील त्याचे ऐकतात.”