Awadhi: NT

Matthew

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1“होसियार रहा! अउ परमेस्सर चाहत ह कि उ सब काम काजन्क मनई क समन्वा दिखावा जिन करा। नाहीं तउ तू आपन परमपिता स फल न पउब्या जउन सरगे मँ बाटइ।2“एह बरे जब तू कउनो दीन दुखिया क दान दच्छिना देत ह तउ ओकर ढिंढ़ोरवा पीटा जिन। जइसा कि आराधनालयन मँ अउर गलियन मँ कपटी मनई औरन स बड़कइ पावई बरे करत हीं। मइँ तोसे सच कहत हउँ कि ओनका तउ ऍकर पूर-पूर फल पहिले ही दीन्ह जाइ गवा अहइ।3मुला जबहिं तू कउनो दीन दुखिया क देत ह तउ तोहार बावाँ हाथ न जान पावइ कि तोहार दाहिन हाथ का करत बाटइ?4काहेकि तोहार दान गुपुत रहइ। तोहार उ परमपिता जउन छिपाइ क करत ह, तोहका ओकरे बदले मँ फल देई।5“जब तू पराथना करा तउ कपटी क नाईं जिन करा। काहेकि उ पचे आराधनालयन मँ अउर गलियन क नुक्कड़ प खड़ा होइ क पराथना करइ चाहत हीं जैसे मनइयन ओनका निहार सकइँ। मइँ तोसे सच सच कहत हउँ कि ओनका तउ ओकरे बदले मँ फल पहिले ही मिल चुका बाटइ।6मुला जब तू पराथना करा, आपन कोठरी मँ चला जा अउर फटकवा बंद कइके परमपिता स पराथना करा। फिन तोहार परमपिता जउन तोहार करम क छिपिके निहारत ह, तोहका ओनके बदले फल देई।7“जब तू पराथना करत रहा, तउ विधर्मी क नाईं फिजूल बातन क यों ही बार बार जिन दोहरावा। उ सबइ इ सोचत हीं कि ओनके बहोत बोले स ओनकइ सुनि लीन्ह जाइ।8यह बरे ओनके जइसा जिन होइ जा काहेकि तोहरे परमपिता तोहारे माँगइ स पहिले जानत ह कि तोहार का जरूरत अहइ।9यह बेर इ प्रकार पारथना करा: ‘सरग मँ रहइ वाले हमारे परमपिता, पवित्तर अहइ तोहार नाउँ10जग मँ तोहार राज्य आवइ जउन चाहा तू वइसे पूर होइ इ धरती प जइसे पूर होत रहता तोहार इच्छा सदा सरग मँ।11आज तू हमका दिन भर क खइया द्या12हमार पापन क छमा करा जइसे हम छमा कीन्ह आपन अपराधिनक।13जिन ल्या कठिन परिच्छा भारी हमका ओसे बचावा जउ उन दुस्ट (सइतान) स अहइ।’14यह बरे जदि तू लोगन्क अपराधे क छमा करब्या तउ तोहार सरगे क परमपिता भी तोहरे पाप छमा करी। 15मुला अगर तू लोगन्क छमा न करब्या तउ तोहार सरगे क परमपिता भी तोहरे पापन्क छमा न करी।16“जब तू उपवास राखा तउ कपटी क नाईं दुःखी मुँह बनाइके जिन रहा। काहेकि उ पचे तरह स मुह्रँ बिसवत हीं ताकि लोगन्क इ मालूम होइ जाइ कि उ सबइ उपवास करत अहइँ। मइँ तोहसे सच कहत हउँ कि ओनका तउ बदले मँ फल मिलि चुका अहइ।17मुला जब तू उपवास राखा तउ आपन मूँड़ प जैतून क तेल लगावा अउर आपन मुँहना धोवा।18जेसे लोग इ न भाँप सकइँ कि तू उपवास करत अहा। मुला तोहार परमपिता जेका तू निहार नाहीं सकत्या देखइ कि तू उपवास करत अहा। तबहिं तोहार परमपिता जउन तोहरे छमा भवा कामे क देखत रहत ह, उ तोहका ओकरे बदले मँ फल देई।19“आपन बरे धरती प भंडारा जिन भरा। काहेकि ओका किरवा अउर जंग नास कइ देइहीं। चोर सेंध लगइहीं अउर चोराय लइ जइहीं।20बजाए एँकरे सरग मँ भंडारा भरा। हुवाँ किरवा अउर जंग नास न कइ पइहीं। अउर चोर भी हुवाँ सेंधिया लगाइके नास न कइ पइहीं।21याद रखा जहाँ तोहार भंडार होई, हूँवई तोहार जिअरा लागी।22“देह बरे प्रकास क सोत आँखी अहइ। एह बरे तोहार आँखी नीक अहइ तउ तोहार देह प्रकास करत रही।23मुला जदि तोहार आँखी खराब होइ जाइ तउ तोहार सब देह अँधियर होइ जाइ। यह बरे उ सिरिफ प्रकास जउन तोहरे भीतर अहइ जदि अँधियर होइ जाइ तउ उ केतना गहिर होई।24कउनो भी साथ साथ दुइ सुआमी क नउकर नाहीं होइ सकत काहेकि उ एक स तउ उ घिना करी अउर दूसर स पिरेम। या एक बरे उ न्यौछावर करी अउर दूसरे क धिक्कारी। तू धन अउर परमेस्सर दुइनउँ क सेवा नाहीं कइ पउब्या।25“यह बरे मइँ तोहसे सच कहत हउँ कि अपने जिअइ बरे खाइ पिअइ क चिंता तजि द्या। आपन तने क ओढ़ना क फिकिर जिन करा। सचमुच जिन्नगी खइया स अउर तने क ओढ़ना स जिआदा बड़कई क अहइ।26लखा! अकासे क पंच्छी न तउ बोआँई करत हीं अउर न कटाई, न ही उ पचे कोठिला मँ अनाज भरि देत हीं मुला तोहार स्वर्गीय पिता ओनकइ भी पेटवा भरत ह। का तू ओनसे जिआदा बड़कवा नाहीं बाट्या!?27तू सबन मँ का कउनो अइसा अहइ कि फिकिर कइके आपन जिन्नगी मँ एक घड़ी भी अउ बढ़ाइ सकत ह28“अउ तू आपन ओढ़ना क बारे मँ काहे सोचन ह सोचा, जंगले क फूलन क बारे मँ कि उ सबइ कइसे खिल जात हीं? उ सबइ न कउनो काम करत हीं अउर न आपन बरे ओढ़ना बनावत हीं।29यह बरे मइँ तोहसे कहत हउँ कि सुलैमान भी आपन समूची धन दौलत क संग ओहमा स कउनो एक नाईं नाहीं सज सका।30तउ जउन जंगली पौधा जउन आज जिअत अहइँ मुला जेनका भियान भारे मँ झोंक दीन्ह जाब अहइ, परमेस्सर अइसा ओढ़ना पहिरावत ह तउ अल्प बिसवास क करवइया मनइयो! का उ तोहका अउर जिआदा बढ़िया ओढ़ना न पहिराई?31यह बरे चिंता करत करत इ जिन कहा, ‘हम का खाबइ’ या ‘हम का पिअब’ या ‘का पहिरब?’32मनई जउन परमेस्सर क नाहीं जनतेन इ सब चीजन्क पाछे दौड़त रहत हीं मुला सरग क बसइया तोहार परमपिता जानत ह कि तोहका इ सब चीजन्क जरूरत अहइ।33यह बरे सब ते पहिले परमेस्सर क राज्य अउर तोहसे जउन धरम की खोज उ चाहत ह, ओकर फिकिर करा। इ सब चीजन तउ तोहका खुद ही घेलइया मँ दइ दीन्ह जइहीं।34भियान क फिकिर जिन करा, काहेकि भियान क तउ अउर आपन चिंता होइहीं। हर दिन क आपन आपन परेसानी होत रहत ह।