Awadhi: NT

Marathi

Luke

12

1अउर फिन जब हजारन मनइयन क भारी भीड़ जुटि गइ तउ एक दुसरे क रौंदे जात रही तब ईसू पहिले आपन चेलन स कहइ लाग, “फरीसियन क खमीरे स, जउन ओनकइ कपट बा, बचा रहा।
1आणि म्हणून हजारो लोकांचा समुदाय जमला होता. इतके लोक जमले होते की, ते एकमेकांना तुडवू लागले, तेव्हा येशू प्रथम आपल्या शिष्यांशी बोलला: “परुश्यांच्या खमिराविषयी जपा, म्हणजे जे ढोंग आहे त्याविषयी जपा.
2कछू छुपा नाहीं अहइ जउन परगट नाहीं कइ दीन्ह जाइ। अइसा कछू अनजाना नाहीं अहइ जेका बतावा नाहीं दीन्ह जाइ।
2उघड केले जाणार नाही असे काहीच झाकलेले नाही व जे कळणार नाही असे काहीच गुच्त नाही.
3एह बरे हर उ बात जेका तू अँधियारे मँ कह्या ह, उजिआरे मँ सुनी जाइ। अउर एकांत खोली मँ जउन कछू भी तू चुप्पे स कउनो क काने मँ कह्या ह, घरे क छते स ऍलान कइ दीन्ह जाइ।”
3यास्तव जे काही तुम्ही अंधारत बोलाल ते उजेडात ऐकले जाईल आणि जे काही तुम्ही कोणाच्या कानात एकांतात सांगाल ते घराच्या छपरावरुन घोषित केले जाईल.”
4“मुला मोर मीतो, मइँ तोहसे कहत हउँ ओनसे जिन डेराअ जउन तोहरे तन क मारि डाइ सकत हीं अउर ओकरे पाछे अइसा कछू नाहीं अहइ जउन ओनके बस मँ होइ।
4“परंतु माझ्या मित्रांनो, मी तुम्हांला सांगतो, जे शरीराला मारतात त्यांना तुम्ही भिऊ नये, कारण त्यानंतर त्यापेक्षा जास्त त्यांना काही करता येत नाही.
5मइँ तोहका देखाउब कि तोहका कउनो स डेराइ चाही। ओसे (परमेस्सर) डेराअ अउर तोहका मारिके नरक मँ नावइ क सक्ती राखत ह। हाँ, मइँ तोहका बतावत हउँ, बस उहइ स डेराअ।
5तुम्ही कोणाची भीति बाळगावी हे मी तुम्हांला सांगतो. तुम्हांला ठार मारल्यांनतर तुम्हांस नरकात टाकून देण्यास जो समर्थ आहे, त्याची भीति धरा. होय, मी तुम्हांस सांगतो त्यालाच भ्या.
6“का दुइ पइसा मँ पाँच ठु चिरइयन नाहीं बिकतिन? फिन भी परमेस्सर ओहमाँ स एक क भी नाहीं बिसरत।
6“पाच चिमण्या दोन पैशांना विकतात की नाही? आणि त्यातील एकीचाही देवाला विसर पडत नाही.
7अउर लखा तोहरे मूँड़े प क एक एक बारि तलक गना भवा अहइँ। डेराअ जिन तू बहोत सी चिरइयन स कहूँ जिआदा कीमत क अहा।”
7पण तुमच्या डोक्यावरील सर्व केसदेखील त्याने मोजलेले आहेत. भिऊ नका. पुुष्कळ चिमण्यांपेक्षा तुम्ही मूल्यवान आहात.”
8“मुला मइँ तोहसे कहत हउँ जउन कउनो मनई सबहीं क समन्वा मोका मानत ह, मनई क पूत भी उ मनई क परमेस्सर क दूतन क समन्वा मानी।
8“प्रत्येक जण जो मला इतर लोकांसमोर स्वीकारतो, त्या मनुष्याला देवाच्या दूतासमोर मनुष्याचा पुत्रही स्वीकारील.
9मुला ज जउन मोका दुसरे क समन्वा न मानी, ओका परमेस्सर क दूतन क समन्वा इन्कार कइ दीन्ह जाइ।
9परंतु जो मला इतर लोकांसमोर नाकारतो, तो देवदूतांसमोरही नाकारला जाईल.
10“अउर हर उ मनई क तो छमा कइ दीन्ह जाइ जउन मनई क पूत क खिलाफ कउनो सब्द बोलत ह, मुला जउन पवित्तर आतिमा क बुराई करत ह, ओका छमा नाहीं कीन्ह जाइ।
10“प्रत्येक मनुष्य जो मनुष्याच्या पुत्राविरुद्ध बोलतो, त्याला क्षमा केली जाईल. परंतु जो पवित्र आत्म्याविरुद्ध दुर्भाषण करतो त्याला क्षमा केली जाणार नाही.
11“तउ जब उ पचे तोहका आराधनालय मँ, राज्य क करइवालन अउर अधिकारियन क समन्वा लइ जाइँ तउ फिकिर जिन कर्या काहे तू आपन क कइसे बचउब्या या तोहका का कछू कहे होइ।
11“जेव्हा ते तुम्हांला सभास्थान, सरकार, अधिकारी यांच्यासमोर आणतील तेव्हा तुम्ही काय बोलावे किंवा स्वत:चा बचाव कसा करावा याविषयी आधीच चिंता करीत बसू नका.
12चिंता जिन करा काहेकि पवित्तर आतिमा तोहका सिखाइ कि उ समइया तोहका का बोलइ चाही।”
12कारण तुम्ही काय बोलावे हे पवित्र आत्मा त्यावेळी तुम्हांला शिकवील.”
13फिन भीड़ मँ स ओसे कउनो कहेस, “गुरु, मोरे भइया स मोरे बाप क धन दौलत क हींसा बाँटइ बरे कहि द्या।”
13नंतर लोकसमुदायातील एक जण त्याला म्हणाला, “गुरुजी, माझ्या भावाला वतन विभागून माझे मला द्यायला सांगा!”
14ऍह प ईसू ओसे कहेस, “अरे भले मनई, मोका तोहरे बरे निआववाला या पंच कउन बनएस ह”
14परंतु येशू त्याला म्हणाला, “मनुष्या, मला तुमच्यावर मध्यस्थ किंवा न्यायाधीश म्हणून कोणी नेमले?”
15तउ ईसू ओनसे कहेस, “होसियारी क संग आपन क लालच स दूर राखा। काहेकि जरूरत स जिआदा धन-दौलत होइ प जिन्नगी क आधार ओकर संग्रह नाहीं होत।”
15मग येशू त्यांना म्हणाला, “सांभाळा आणि सर्व प्रकारच्या लोभापासून स्वत:ला दूर ठेवा. कारण जेव्हा एखाद्या माणसाजवळ त्याच्या गरजेपेक्षा अधिक असते तेव्हा ती संपत्ती म्हणजे त्याचे जीवन असे होत नाही.”
16फिन उ ओनका एक दिस्टान्त कथा सुनाएस: “कउनो धनी मनई क धरती प खूब पैदावार भइ।
16नंतर त्याने त्यास एक बोधकथा सांगितली: “कोणा एका धनवान मनुष्याच्या जमिनीत फार उत्तम पीक आले.
17उ आपन मनवा मँ सोचत भवा कहइ लाग, ‘मइँ का करुँ, मोरे लगे फसिल क रखइ बरे ठउर तउ अहइ नाहीं।’
17तो स्वत:शी विचार करुन असे म्हणाला, “मी काय करु, कारण धान्य साठवायला माझ्याकडे जागा नाही?’
18फिन उ बोला, ‘ठीक अहइ मइँ इ करब कि आपन अनाज क कोठिला गिराइके बड़का कोठा बनवाउब अउर आपन समूचा अनाज क अउर सामान हुवाँ रखब।
18मग तो म्हणाला, “मी असे करीन की धान्याची कोठारे पाडून मोठी बांधीन, मी माझे सर्व धान्य व माल तेथे साठवीन.
19फिन आपन आतिमा स कहब, अरे मोर आतिमा अब बहोत स उत्तिम बस्तु, बहोत स बरिस बरे तोहरे लगे ऍकट्ठी अहइँ। घबरा जिन, खावा, पिआ अउर मउज उड़ावा!’
19आणि मी माझ्या जिवाला म्हणेन, जिवा, तुझ्यासाठी पुष्कळ चांगल्या गोष्टी अनेक वर्षे पुरतील इतक्या आहेत. आराम कर, खा, पी आणि मजा कर.”
20मुला परमेस्सर ओसे बोला, ‘अरे मूर्ख! इहइ राति मँ तोहार आतिमा तोहसे लइ लीन्ह जाइ। जउन कछू तू तइयार किहे अहा, ओका कउन लेइ?’
20पण देव त्याला म्हणतो, “मूर्खा, जर आजा तू मेलास तर तू मिळविलेल्या गोष्टी कोणाला मिळतील?’
21“लखा, उ मनई क संग भी कछू अइसा ही भवा ह, उ अपने बरे बटोरत ह मुला परमेस्सर क निगाह मँ उ धनी नाहीं।”
21“जो कोणी स्वत:साठी संपत्ती जमा करतो परंतु देवाच्या दृष्टीने जो धनवान नाही, अशा मनुष्यासारखे हे आहे.”
22तब उ आपन चेलन स कहेस, “एह बरे मइँ तोहसे हउँ, आपन जिन्नगी क फिकिर जिन करा कि तू का पहिनब्या?
22मग येशू त्याच्या शिष्यांना म्हणाला, “म्हणून मी तुम्हांस सांगतो, स्वत:च्या जीवनाविषयी किंवा तुम्ही काय खावे याविषयी चिंता करु नका. किंवा तुमच्या शरीराविषयी म्हणजे कोणते कपडे घालावेत याविषयी चिंता करु नका.
23काहेकि जिन्नगी खइया स अउर तन ओढ़ना स जिआदा जरूरी अहइ।
23कारण अन्नापेक्षा जीव आणि कपड्यापेक्षा शरीर महत्त्वाचे आहे.
24कउअन क लखा, न उ पचइ बोवत हीं, न ही उ पचे काटत हीं। न ओनके लगे भण्डारा बा अउर न आजु अन्न क कोठिला, फिन भी परमेस्सर ओनका भोजन देत ह। तू तउ चिरइयन स केतॅना जिआदा कीमती अहा।
24कावळ्यांचा विचार करा. ते पेरीत नाहीत व कापणीही करीत नाहीत. त्यांना कोठार नाही व कणगीही नाही. तरीही देव त्याचे पोषण करतो. पक्ष्यांपेक्षा तुम्ही कितीतरी मोलवान आहात!
25चिन्ता कइके, तू पचन मँ स कउन अइसा अहइ, जउन आपन उमिर मँ एक घड़ी भी अउर जोर सकत ह
25चिंता करुन तुम्हांपैकी कोण स्वत:च्या आयुष्यात एका तासाची भर घालू शकेल?
26काहेकि तू जदि छोटका काम क भी नाहीं कइ सकत्या तउ बाकी बरे काहे फिकिर करत ह
26ज्याअर्थी तुम्ही ही लहान गोष्ट करु शकत नाही, तर इतर गोष्टीविषयी चिंता का करता?
27कोका बेली क लखा, उ कइसे उगत हीं? न उ सबइ मेहनत करत हीं, न कताई, फिन भी मइँ तोहसे कहत हउँ कि सुलैमान आपम समूचे धन दौलत क संग ओहमाँ स कउनो एक क नाई नाहीं सज पाएस।
27रानफुले कशी वाढतात याचा विचार करा. ते कष्ट करीत नाहीत व कातीत नाहीत. तरी मी तुम्हांला सांगतो शलमोनानेसुद्धा आपल्या सर्व वैभवात त्यांच्यातील एकासारखाही पोशाख घातला नव्हता.
28एह बरे जब मैदान क घास क, जउन आज हिआँ बा अउर भियान ही ओका भार मँ झोंक दीन्ह जाइ, परमेस्सर अइसे ओढ़नन स सजावत ह तउ अरे ओ कम बिसवास करइया मनइयो! तोहका तउ उ केतॅना अउर जिआदा ओढ़ना पहिराइ।
28जर देवाने जे आज आहे व उद्या भट्टीत टाकले जाईल अशा त्या रानातील गवताला असा पोशाख घातला आहे, तर तुम्ही जे अल्पविश्वासू त्या तुम्हांला तो कितीतरी अधिक (चांगला) पोशाख घालणार नाही काय!
29अउर फिकिर जिन करा कि तू का खाब्या अउर का पीब्या। ऍनके बरे जिन सोचा।
29आणि तुम्ही काय खावे व काय प्यावे याविषयी खटपट करु नका. या गोष्टीविषयी चिंता करु नका.
30काहेकि संसार क अउर सबहीं मनई चीजन्क क पाछे धावत अहइँ मुला तोहार परमपिता तउ जानत ही अहइ कि तोहका इ चीजन्क जरूरत अहइ।
30कारण जगातील सर्व लोक हे मिळविण्याची खटपट करतात पण या गोष्टींची गरज तुम्हांला आहे, हे तुमच्या पित्याला माहीत आहे.
31मुला तू तउ परमेस्सर क राज्य क चिन्ता करा। इ चीजन तउ तोहका दइ दीन्ह जइहीं।
31त्याऐवजी प्रथम त्याचे राज्य मिळविण्यासाठी झटा म्हणजे याही गोष्टी तुम्हांला दिल्या जातील.
32“हे भोली भेड़ी क झुण्ड! जिन डेराअ, काहेकि तोहार परमपिता तोहका राज्य देइ क तइयार अहइ।
32“लहान कळपा भिऊ नको, कारण तुम्हांला त्याचे राज्य द्यावे हे दयाळू पित्याला समधानाचे वाटते.
33तउ आपन धन दौलत बेंचिके धन गरीबन मँ बाँटि द्या। आपन लगे अइसी झोरी राखा जउन पुरान न होई अरथ बा कबहुँ न टूटइवाला सरगे मँ खजाना जहाँ ओह तलक कउनो चोर क पहुँच न होइ। अउर न ओका न किरवा नास कइ पावइँ।
33तुमच्याकडे असलेले सर्व विका आणि गरिबांना पैसे द्या. जुन्या न होणाऱ्या व स्वर्गातही न संपणाऱ्या अशा थैल्या स्वत:साठी करा. जेथे चोर जाऊ शकणार नाही व कसरही त्याचा नाश करु शकणार नाही.
34काहेकि जहाँ तोहार खजाना अहइ, हुवँई तोहार मनवा भी रही।
34कारण जेथे तुमचे धन आहे तेथे तुमचे मनही लागेल.
35“काम करइ क सदा तइयार रहा। अउर आपन दिया बारे रहा।
35“तुमच्या कंबरा बांधलेल्या आणि दिवे लागलेले असू द्या.
36अउर ओ मनइयन जइसा बना जउन बियाह क भोज स लौटिके आवत आपन स्वामी क जोहत होइँ जेहसे उ जब आवइ अउर दुआर खटखटावइ तउ उ पचे फउरन खोलि सकइँ।
36लग्नाच्या मेजवानीवरुन त्यांचा मालक परत येईल अशी वाट पाहणाऱ्या लोकांसारखे व्हा. यासाठी की जेव्हा तो येतो व ठोठाठतो तेव्हा त्याच्यासाठी ते ताबडतोब दार उघडतील.
37उ नउकर धन्य अहइँ जेका स्वामी वापस आइके जागत अउर तइयार पइहीं। मइँ तोहसे सच कहत हउँ कि उ भी ओनकर सेवा बरे करिहाउँ बाँधि लेइ अउर ओनका जेवाइ क पीढ़ा प जेवइं बरे बइठाई। उ आई अउर ओनका जेंवाइ।
37धन्य ते नोकर जे त्यांचा मालक परत आल्यावर त्याला जागे व तयारीत असलेले आढळतील. मी तुम्हांला खरे सांगतो, तो स्वत: त्यांची सेवा करण्यासाठी कंबर कसेल, त्यांना मेजावर बसायला सांगून त्यांची सेवा करील.
38उ चाहे आधी राति स पहिले आवइ अउर चाहे आधी राति क पाछे जदि उ ओनका तइयार पावत ह तउ उ सबइ धन्य अहइँ।
38तो मध्यरात्री येवो अगर त्यांनतर येवो. जर ते त्याला असे तयारीत आढळतील तर ते धन्य.
39इ बात बरे निस्चित रहा कि जदि घरे क स्वामी क इ पता होइ कि चोर कउनो घड़ी आवत अहइ, तउ उ ओका आपन घरे मँ सेंध नाहीं लगावइ देइ।
39परंतु याविषयी खात्री बाळगा; जर घराच्या मालकाला चोर केव्हा येणार हे माहीत असते तर त्याचे घर त्याने फोडू दिले नसते.
40तउ तू भी तइयार रहा काहेकि मनई क पूत अइसी घड़ी मँ आई जेका तू सोच नाहीं सकत्या।”
40तुम्हीही तयार असा कारण तुम्ही अपेक्षा करणार नाही अशा कोणत्याही क्षणी मनुष्याचा पुत्र येईल.”
41तब पतरस पूछेस, “पर्भू इ दिस्टान्त कथा तू हमरे बरे कहत अहा या सब बरे?”
41मग पेत्र म्हणाला, “प्रभु, तुम्ही ही बोधकथा आम्हांलाच सांगत आहात की सर्वांना?”
42ऍह प पर्भू कहेस, “तउ फिन अइसा बिसवास क जोग्ग, बुद्धिमान संरजाम अधिकारी कउन होइ जेका पर्भू आपन नउकरन क ठीक समइ प खइया क चीज देइ बरे ठहराइ?
42तेव्ह प्रभु म्हणाला, “असा कोण शहाणा व विश्वासू कारभारी आहे की, ज्याला प्रभु त्याच्या नोकरांना त्याचे धान्य योग्य वेळी देण्यासाठी त्याची नेमणूक करील?
43उ नउकर धन्य अहइ जेका ओकर स्वामी जब आवइ तउ ओका वइसा ही करत पावइ।
43त्याचा मालक येईल त्यावेळी असे करताना जो नोकर आढळेल तो धन्य.
44मइँ सच कहत हउँ कि उ ओका आपन सबहिं धन दौलत क अधिकारी ठहराइ।
44मी तुम्हांला खरे सांगतो, मालक त्या नोकराला त्याच्या सर्व मालमत्तेवर अधिकारी म्हणून नेमील.
45मुला उ नउकर आपन मनवा मँ सोचइ कि मोर स्वामी तउ आवइ मँ देर करत अहइ अउर उ दूसर पुरुस अउर स्त्री नउकरन क मारब पीटब सुरु कइ देइ अउर खाइ पिअइ अउर नसा मँ चूर होइ।
45पण जर तो नोकर मनात म्हणतो, “माझा मालक येण्यास फार विलंब लावतो.’ व तो त्याच्या स्त्री व पुरुष नोकरांना मारहाण करतो व खाण्यापिण्यास सुरुवात करतो.
46तउ उ जउकर क स्वामी अइसे दिन आइ जाइ जेका उ सोचत नाहीं। एक ठु अइसी घरी जेकरे बारे मँ निसाखातिर अहइ। फिन भी ओकर टुकरा टुकरा कइ डाइ अउर ओका न बिसवास करइयन क बीच ठउर देइ।
46ज्या दिवसाची तो वाट पाहत नाही त्या दिवशी त्या नोकराचा मालक येईल व अशा वेळी येईल की ती वेळ त्याला माहीत असणार नाही. आणि तो त्याचे वाभाडे वाभाडे काढील व तो त्याला अविश्वासू लोकांबरोबर ठेवील.
47“उ नउकर जउन आपन स्वामी क इच्छा जानत ह अउर ओकरे बरे तइयार नाहीं होत या जइसा ओकर स्वामी चाहत ह, वइसहु नाहीं करत, तउ नउकर प जमिके मार परी।
47ज्या नोकराला आपल्या मालकाची इच्छा माहीत असते व जो तयार राहत नाही, किंवा जो आपल्या मालकाच्या इच्छेप्रमाणे करीत नाही, त्या नोकराला खूप मार मिळेल.
48मुला उ जेका आपन स्वामी क इच्छा क ग्यान नाहीं अउर कउनो अइसा काम कइ डावइ जउन मार खाइ काबिल होइ तउ उ नउकर प हल्की मार परी। काहेकि उ हर मनई स जेका बहोत जिआदा दीन्ह ग अहइ, जिआदा माँगा जाइ। उ मनई जेका ढेर सौंपा ग अहइ ओसे जिआदा ही माँगा जाइ।”
48परंतु कसलाही वाईट हेतू न बाळगता मालकाला न आवडणारे जर त्याने केले असेल तर त्याला कमी मार बसेल. ज्या कोणाला पुष्कळ दिले आहे त्याच्याकडून पुष्कळाची अपेक्षा केली जाईल. ज्यांच्याजवळ जास्त ठेवले आहे त्यांच्याकडून जास्त मागितले जाईल.”
49“मइँ धरती प एक आगी बारइ आवा हउँ मोर केतॅनी इच्छा अहइ कि उ साइद अबहुँ ताई बरि जात।
49मी पृथ्वीवर आग लावण्यास आलो आहे. मला असे वाटते की ती अगोदरच पेटली असती तर किती बरे झाले असेत.
50मोरे लगे एक बपतिस्मा अहइ जउन मोका लेब बा जब ताईं उ पूरा नाहीं होइ जात, मइँ केतॅना बियाकुल हउँ।
50माझ्याकडे बाप्तिस्मा आहे व तो मला घ्यावयाचा आहे. आणि तो होईपर्यंत मी किती अस्वस्थ आहे!
51तू का सोचत बाट्या कि मइँ इ धरती प सान्ति लइ आवइ क बरे आवा हउँ? नाहीं, मइँ तोहका बतावत हउँ, मइँ अलगावइ आवा हउँ।
51तुम्हांला असे वाटते का की मी पृथ्वीवर शांतता प्रस्थापित करण्यास आलो आहे? नाही, मी तुम्हांला सांगतो मी तुमच्यात फूट पाडण्यासाठी आलो आहे.
52काहेकि अब स आगे एक घरे क पाँच आदमी एक दूसर क खिलाफ बँटि जइहीं। तीन दुइ क बिरोध मँ अउर दुइ तीन क बिरोध मँ होइ जइहीं।
52मी असे म्हणतो कारण आतापासून घरातील पाच जणात एकमेकाविरुद्ध फूट पडेल. तिघे दोघांविरुद्ध व दोघे तिघांविरुद्ध अशी फूट पडेल.
53बाप बेटवा क बिरोध मँ, अउर बेटवा बाप क बिरोध मँ, महतारी बिटिया क बिरोध मँ, अउर बिटिया महतारी क बिरोध मँ, सास दुलहिन क बिरोध मँ अउर दुलहिन सास क बिरोध मँ होइ जइहीं।”
53त्यांच्यात पित्याविरुद्ध मुलगा व मुलाविरुद्ध पिता अशी फूट पडेल, आईविरुद्ध मुलगी व मुलीविरुद्ध आई अशी फूट पडेल, सासूविरुद्ध सून व सुनेविरुद्ध सासू अशी त्यांच्यात फूट पडेल.”
54फिन उ भीड़ स बोला, “जब तू पच्छू कइँती कउनो बदरे क उठत भइ लखत ह तउ कहि देत ह, ‘बरखा आवति अहइ।’ अउर फिन अइसा ही होत ह।
54तो लोकसमुदायाला म्हणाला, “तुम्ही जेव्हा पश्चिमेकडून ढग येताना पाहता तेव्हा तुम्ही लगेच म्हणता की, “पाऊस पडेल’ आणि तेच घडते.
55अउर फिन जब दखिनी हवा चलत ह, तू कहत ह, ‘गरमी पड़ी’ अउर अइसा ही होत ह।
55जेव्हा दक्षिणेकडचा वारा वाहतो, तेव्हा तुम्ही म्हणता “उकाडा होईल’ आणि तसे घडते.
56अरे कपटी मनइयो! तू धरती अउर अकासे क रूपे क समझाउब तउ जानत बाट्या, फिन अइसा काहेकि इ जुग क बारे मँ समझउत्या नाहीं?”
56अहो ढोंग्यांने! तुम्ही पृथ्वीवरील व आकाशातील स्थित्यंतरे पाहून अनुमान काढता, पण सध्याच्या काळाचा अर्थ तुम्हांला का काढता येत नाही?”
57“जउन नीक अहइ, ओकर फैसला करइवाला तू खुद काहे नाहीं बनत्या?
57“आणि काय योग्य आहे हे तुमचे तुम्ही स्वत:च का ठरवीत नाही?
58जब तू आपन बैरी क संग न्यायाधीस क लगे जात रहब्या तउ रास्ता मँ ही ओकरे संग समझौता करइ क जतन करया। नाहीं तउ कहूँ अइसा न होइ कि उ तोहका न्यायाधीस क लगे खैंच लइ जाइँ अउर न्यायाधीस एक अधिकारी क सौंपि देइ। अउर अधिकारी तोहका जेलि मँ धाँध देइ।
58तुम्ही तुमच्या वाद्याबरोबर न्यायालयात जात असता वाटेतच त्यांच्याशी समेट करा नाही तर तो तुम्हांला न्यायाधीशासमोर नेईल, आणि न्यायाधीश तुम्हांला दंडाधिकाऱ्याच्या स्वाधीन करील. आणि अधिकारी तुम्हांला तुरुंगात टाकील.
59मइँ तोहका बतावत हउँ, तू हुवाँ स तब ताईं छूटि नाहीं पउव्या जब तलक आखिरी दमड़ी तक न चुकाइ द्या।”
59मी तुम्हांला सांगतो, तुम्ही पै न पै देईपर्यंत तेथून बाहेर पडू शाकणार नाही.”